कांग्रेस का डीएनए
कांग्रेस का डीएनए
मृत्युंजय झा
(स्वयंसेवक) RSS
इस विचार को
समझने के लिए हमें कांग्रेस की स्थापना से कुछ वर्ष पीछे जाना होगा। दरअसल,
अंग्रेज किसी तरह 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की लपटों से बच तो गए थे,
लेकिन उन्हें यह अहसास हो चुका था कि भारत के
लोगों के मन में विद्रोह की चिनगारी सुलग रही है और यदि यह भाव बना रहा तो उनके
दिन गिनती के हैं। उन्हें भारतीयों में उमड़ती राष्ट्रीयता की भावना को दबाना था।
साथ ही, भारत में मौजूद ब्रिटिश
कर्मचारियों के मन से असंतोष को खत्म कर ब्रिटिश शासन के प्रति समर्पण भाव जगाना
था, क्योंकि इन्हीं
कर्मचारियों के जरिए अंग्रेज सरकार के प्रति आम जन की नाराजगी भी खत्म करवानी थी।
यानी भारत में देश को लूटने वाले विदेशी आक्रांताओं के शासन को स्थायी बनाना,
यहां के लोगों में एकता नहीं होने देना,
भारत में फिर किसी क्रांति को न होने देना,
और यह सुनिश्चित करना कि कांग्रेस एक राजनीतिक
मंच के तौर पर दिखती रहे। कांग्रेस के गठन के पीछे अंग्रेजों की मंशा यही थी।
यह तथ्य इतिहास
में दर्ज है कि ए.ओ. ह्यूम को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान 17 जून, 1857 को इटावा (उत्तर प्रदेश) से मुंह पर कालिख पोतकर, साड़ी पहनकर और ऊपर से बुर्का डालकर भागना पड़ा
था। उस समय ह्यूम इटावा के मजिस्ट्रेट और कलेक्टर थे। ह्यूम
22 वर्ष तक
कांग्रेस के महासचिव रहे। वे चाहते थे कि कांग्रेस के अधिवेशन की अध्यक्षता कोई
अंग्रेज अधिकारी ही करे, अंग्रेजों के
चाटुकार कांग्रेस के भारतीय सदस्य भी यही चाहते थे। लेकिन इससे अंग्रेजों का असली
उद्देश्य पूरा नहीं होता। अंग्रेजों को वैसे देसी मुखौटे चाहिए थे जिन्हें आगे
रखते हुए वे अपने हित पूरा कर सकें। इसलिए व्योमकेश बनर्जी को कांग्रेस का पहला
अध्यक्ष चुना गया, जो न सिर्फ
कन्वर्टेड बंगाली ईसाई थे, बल्कि अंग्रेजों
के चहेते भी थे। व्योमकेश बनर्जी ने अधिवेशन की शुरुआत इस प्रकार की,
"We pledge our unstinted and
unswerving loyalty to Her Majesty the Queen Victoria, the Empress of
India"
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