पंथनिरपेक्षता ही हमारा धर्म है
मृत्युंजय कुमार झा
(स्वयंसेवक) आर.एस.एस
पंथनिरपेक्षता ही हमारा धर्म है
जिस देश के संसद भवन के प्रवेश द्वारों पर तथा दीवारों पर धर्म से संबंधित कई बोध वाक्य लिखे हो उस देश को धर्मनिरपेक्ष कहना एक विडंबना ही है और इस विडंबना का प्रमुख कारण है सेक्युलर इस शब्द का गलत अनुवाद करके उसे ही सही मानना और उसे प्रचलित करना। क्युलर का संविधान में भी एक जगह "पंथनिरपेक्ष” और दूसरी जगह "लौकिक" इस रुप में अनुवाद किया गया है परंतु फिर भी हम अपने आप को धर्मनिरपेक्ष कह कर अपना ही मजाक उड़ा रहे हैं।
राज्यसभा ओर लोकसभा के दीवारों पर लिखे इन बोध वाक्यों पर थोड़ी नजर डालें_
• सत्यं वद धर्म चर • अहिंसा परमोधर्मः
• वृद्धा न ते ये न वदन्ति धर्मम् • धर्मं स न यत्र न सत्यमस्तु
• धर्मचक्र प्रवर्तनाय
वास्तव में मानवोचित लौकिक कर्म को ही धर्म कहा गया है। धर्म सापेक्ष होना ही मनुष्य जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। अतः हमें सोचना होगा कि अपने आप को धर्मनिरपेक्ष कहना गौरव की बात है या शर्म की।
हमारे लिए गौरव की बात यह है कि हम पंथनिरपेक्ष है। विश्व में भारत ही ऐसा देश है जो किसी पंथ विशेष के प्रति दुराग्रही ना होकर सभी पंथों को एक ही छत्रछाया में रखता है। यह देश विविध पंथों के सह अस्तित्व का उदाहरण बना है। अपने मत या पंथ का दुराग्रह और उसके कारण औरों का मतांतरण करवा कर अपनी संख्या बढ़ाने की राजनीतिक कुटिलता मानव धर्म के विपरीत कार्य है। भारत ने मानव धर्म को चिर पुरातन होते हुए भी नित्य नूतन बनाए रखा है। यही सनातन परंपरा है जिसे भारत ने निभाया है। इसी परंपरा का प्रचलित नाम है हिंदू या हिंदुत्व। यही पंथनिरपेक्षता का पर्यायवाची शब्द है। इसी संदर्भ में हमें स्वामी विवेकानंद के उस कथन को चरितार्थ कर आचरण में लाना होगा जो उन्होंने शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में कहा था, "मुझे हिंदू होने पर गर्व है, गर्व से कहो हम हिंदू है"। इस पृष्ठभूमि के परिप्रेक्ष्य में किसी भी देश का "हिंदू राष्ट्र" होना यह उसके सेकुलर अर्थात पंथनिरपेक्ष होने का प्रमाण पत्र है। हिंदुत्व का विस्तार ही पूरे विश्व को पंथनिरपेक्ष बनाए रख सकता है। यही मार्ग "वसुधैव कुटुम्बकम्" की भावना को साकार करेगा।
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