वंदे मातरम आंदोलन और डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार
मृत्युंजय कुमार झा
(स्वयंसेवक) आर.एस.एस
वंदे मातरम आंदोलन और डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार
सन 1901 का वर्ष नागपुर और केशव दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। इस वर्ष अंग्रेजी राज के खिलाफ इस शहर में संगठित छात्र आंदोलन की शुरुआत हुई और इस कार्य की योजना एवं क्रियान्वयन केशव के द्वारा ही हुआ।
बंग विभाजन के बाद सरकारी दमनचक्र की तीव्रता पूरे देश में बढ़ती जा रही थी। बंगाल में, राजनीतिक आंदोलन में विद्यार्थियों की अहम भूमिका को देखते हुए सरकार ने एक नोटिस जारी किया। इसके द्वारा विद्यार्थियों के राजनीतिक गतिविधियों अथवा आंदोलनों में भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इसके अतिरिक्त 'वंदे मातरम्' एवं 'तिलक महाराज की जय' जैसे नारे लगाने को दंडनीय अपराध घोषित किया गया। यह नोटिस 'रिस्ले सर्कुलर' के नाम से प्रसिद्ध था। इसके पूर्व बंगाल में सरकार ने ऐसा ही एक 'कार्लाइल सर्कुलर' निकाला था। महर्षि अरविंद घोष ने 'वंदे मातरम्' समाचारपत्र में 'टू मीनिंग ऑफ रिस्ले सर्कुलर' नामक लेख लिखकर साम्राज्यवादी सरकार पर आरोप लगाया कि वह छात्रों एवं युवाओं को देशभक्ति की धारा, भाव एवं कार्यक्रमों से वंचित करके बौद्धिक जगत से दूर करना चाहती है; इसका वास्तविक उद्देश्य साम्राज्यवाद-विरोधी आंदोलन को कमजोर करना है।
इस सर्कुलर का मध्यप्रांत में विरोध नागपुर से शुरू हुआ। सन 1907 के मध्य में विद्यालय निरीक्षक प्रतिवर्ष की भांति स्कूल का पर्यवेक्षण करने नील सिटी स्कूल आए थे। जैसे ही निरीक्षक केशव की कक्षा में गए, सभी छात्रों ने उठकर एक साथ 'वंदे मातरम्' की जोरदार घोषणा से उनका स्वागत किया और प्रत्येक कक्षा में इसकी पुनरावृत्ति होती रही। केशव के सहपाठी गोविंद गणेश आवदे ने इस घटना का वर्णन करते हुए लिखा-
'गुस्से से लाल-पीले होकर विद्यालय निरीक्षक प्रधानाध्यापक जनार्दन विनायक ओक के कमरे में आ गए और बिना बात किए अपनी टोपी लेकर सीधे चले गए। इसके तुरंत बाद उन्होंने विद्यालय प्रबंध समिति के चेयरमैन सर विपिन कृष्ण बोस को पत्र लिखकर दोषी छात्रों को 'अनुशासनहीनता' के लिए अविलंब सजा देने की मांग की।"
नागपुर के वरिष्ठ राष्ट्रवादी नेताओं को, जिनमें डा. मुंजे भी शामिल थे, इस घटना का पता पहले से नहीं था। नागपुर में हलचल मची, किंतु किसी को यह आशा नहीं थी कि केशव के द्वारा फेंकी गई एक माचिस की तीली पूरे प्रांत में साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन की ज्वाला पैदा कर देगी। सर बोस ने अगले दिन स्कूल में छात्रों को संबोधित करते हुए उन्हें माफी मांगने की हिदायत दी। उन्होंने कहा- 'मैं स्वयं रात को सोने से पहले प्रतिदिन वंदे मातरम् गाता हूं लेकिन स्कूल यह गाने के लिए उचित नहीं है। अतः आप सब अपनी गलती मानकर माफी मांग ले।' जैसे ही उनका भाषण खत्म हुआ, सभी छात्रों ने केशव की अगुवाई में और भी तेज स्वर में 'वंदे मातरम्' की घोषणा की और क्रोधित बोस ने केशव की कक्षा के सभी छात्रों को निष्कासित करने के लिए पत्र जारी कर दिया।
स्कूल के अधिकारियों को इसका तनिक भी भान नहीं था कि छात्रों के बीच जबर्दस्त राजनीतिक ध्रुवीकरण हो चुका है। केशव ने आरंभ से अंत तक की योजना अत्यंत ही गोपनीय तरीके से बना रखी थी। विद्यालय प्रबंध समिति के निर्णय के विरुद्ध स्कूल के सभी दो हजार छात्र अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए। हड़ताल दो महीने तक चलती रही। इस हड़ताल में नागपुर का मारिस कालेज भी शामिल हो गया। केशव के नेतृत्व में जुलूस, प्रभात फेरी इत्यादि आम बात बन गई। अंततः अच्युतराव कोल्हटकर की मध्यस्थता से स्कूल खुला। छात्रों ने समझाने-बुझाने तथा अपने माता-पिता एवं शिक्षकों के दबाव में माफी माग ली। परंतु अकेले केशव ने ऐसा करने से साफ इंकार कर दिया। उन्होंने भरी सभा में कहा :
"अगर मातृभूमि की आराधना अपराध है तो मैं यह अपराध एक नहीं, अनगिनत बार करूंगा और इसके लिए मिलने वाली सजा को भी सहर्ष स्वीकार करूंगा।"
फलतः सितंबर माह में केशव को विद्यालय से निष्कासित कर दिया गया। केशव ने इसे देशभक्ति का प्रसाद समझकर सहर्ष स्वीकार कर लिया। नागपुर में वह लोकप्रिय युवा नेता के रूप में प्रतिष्ठित हुए। नागपुर में इस घटना के विरोध में छात्रों ने छिटपुट रूप से सरकारी अधिकारियों, यूरोपीय लोगों एवं राजभक्तों को 'वंदे मातरम्' की घोषणा से चिढ़ाना एवं फब्तियां कसना शुरू किया। मध्यप्रांत के मुख्य आयुक्त सर रेजिनलैंड क्राडोक ने पुलिस महानिरीक्षक सी.आर. क्लीवलैंड को पत्र लिखकर नागपुर की स्थिति पर अपनी चिंता जताई। उसने लिखा- 'पुलिस नागपुर में छात्रों की गुंडागर्दी से किस प्रकार निपट रही है, उससे मैं एकदम संतुष्ट नहीं हूं। अगर ऐसे ही चलता रहा तो हमारे सभी सम्मानीय लोग भयभीत होकर नागपुर से भाग जाएंगे।
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