वामपंथी इतिहासकारों ने इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा
(स्वयंसेवक) आर.एस.एस
वामपंथी इतिहासकारों ने इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा
इस देश के वामपंथी इतिहासकारों ने अपने आख्यान और झूठे प्रचार को स्थापित करने
के लिए भारत के सच्चे इतिहास को क्षति पहुँचाई है। रोमिला थापर, बिपिन चंद्र और एस गोपाल, इरफान हबीब, आरएस शर्मा, डीएन झा, सूरज भान और
अख्तर अली जैसे इतिहासकारों के समूह ने झूठे आख्यानों का निर्माण किया है और लंबे
समय तक गौरवशाली हिंदू अतीत को अंधेरे युग के रूप में रेखांकित किया है और मुगल
काल को भारत के स्वर्ण युग के रूप में बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया। उन्होंने भारत में
मुस्लिम शासन के दौरान बड़े पैमाने पर धर्मांतरण और हिंदू लोगों के शोषण की अनदेखी
की।
हम इतिहास की मार्क्सवादी
व्याख्या से उत्पन्न जिन समस्याओं को हल करना चाहते हैं, उनमें से एक का उल्लेख बेल्जियम के प्राच्यविद् और भारतविद्
कोनराड एल्स्ट भारत में निषेधवाद
के रूप में करते हैं। भारतीय इतिहास और हिंदू-मुस्लिम संबंधों पर अपने लेखन के लिए
जाने जाने वाले एल्स्ट का कहना है कि एक तरफ जहां यूरोप में निषेधवाद का अर्थ
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यहूदियों और जिप्सियों के नाजी नरसंहार का निषेध
करना है, वहीं भारत में इससे आशय हिंदू स्मृति से इस्लाम के
तलवारधारियों द्वारा उनके उत्पीड़न के इतिहास को मिटाने की कोशिश में जुटे
बुद्धिजीवियों" के वर्ग के निषेध से है।
एल्स्ट के अलावा, कई अन्य पश्चिमी विद्वानों ने इस मुद्दे का समाधान सुझाया है। उनमें शामिल हैं
डेविड फ्रॉली, एक अमेरिकी हिंदू शिक्षक और लेखक जिन्होंने
वेदों और हिंदू धर्म पर व्यापक रूप से लिखा है और फ्रांसीसी पत्रकार फ्रेंकोइस
गौटियर, जिन्होंने भारत को अपना घर बनाया है और इतिहास विशेष रूप से
मध्यकालीन इतिहास की हमारी समझ को सुधारने के लिए जोरदार अभियान चला रहे हैं।
एल्स्ट अमेरिकी इतिहासकार
विल ड्यूरेंट को अपने दावे के समर्थन में उद्धृत करते हुए कहते हैं कि इतिहास के
तथ्यो को धृष्टतापूर्वक नकारना भारतीय बुद्धि जीवियों का प्रमुख काम-धंधा रहा।
वामपंथी झुकाव वाले
इतिहासकारों ने छद्म धर्मनिरपेक्षता के साथ भारतीय इतिहास को विकृत कर दिया।
प्राचीन भारत का इतिहास "औपनिवेशिक काल के दौरान झूठी नींव पर खड़ा किया गया
था। कई विद्वानों ने पौराणिक कालक्रम के बारे में इस विकृत भारतीय कालक्रम के भ्रम
को उजागर करने का प्रयास किया है। वामपंथी इतिहासकारों ने स्कूली इतिहास की
किताबों से लेकर कॉलेज की किताबों तक देश का गौरवशाली अतीत मिटाकर भारतीय इतिहास
को विकृत करने का प्रयास किया है जो कि बेहद दयनीय है।
मार्क्सवादी झुकाव वाले
इतिहासकार इतिहास को विकृत कर रहे हैं और देश के युवाओं को उनके नायकों से अलग
करने की कोशिश कर रहे हैं। हमें इतिहास में मार्क्सवादी दृष्टिकोण के बजाय
भारत-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। वामपंथियों ने अपने पाठ्यपुस्तक प्रचार
खासकर एनसीईआरटी पाठ्यक्रम के माध्यम से स्कूली
बच्चों की प्रारंभिक समझ को पूरी तरह से विकृत कर दिया है। मार्क्सवादी
इतिहासकारों ने पुरातात्विक साक्ष्यों की कमी का हवाला देते हुए राम और कृष्ण के
अस्तित्व पर सवाल उठाकर छोटे बच्चों की मान्यताओं के साथ खिलवाड़ किया है, जबकि उन्होंने बिना किसी सबूत के दूसरे धर्मों के नायकों के अस्तित्व को
स्वीकार किया है।
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